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Friday, 3 April 2009

तब प्रत्याशी के नाम से बनती थी मतपेटिका

Apr 03, 08:29 pm
अलीगढ़। जब से मतदान में ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की शुरुआत हुई तब से 'जाति पर ना पांति पर मुहर..' जैसे नारे भी खत्म हो गए। यानी मुहर और मतपत्र बीते जमाने की बात हो गई। वरना, पहले दो आमचुनावों में हर प्रत्याशी की अलग मतपेटिका बनती थी। यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे। वर्ष 62 में शुरू हुआ कॉमन मतपेटिका का चलन।
चुनावों के अतीत पर नजर डालें तो वर्ष 1952 और वर्ष 1957 में हुए लोकसभा के चुनावों में हर प्रत्याशी की अलग मतपेटिका होती थी। यह बात चुनाव के जानकार बताते हैं। युवा पीढ़ी के लिए यह बात भले ही चकित करने वाली हो, मगर यह सच है। इसके बाद वर्ष 62 के लोकसभा चुनाव में कॉमन मतपेटिका का इस्तेमाल शुरू हुआ। तब लोग मतपत्र लेने के बाद उस पर अपने पंसद के प्रत्याशी के नाम के आगे मुहर यानी ठप्पा लगाकर मतपत्र को मतपेटिका में डालते थे। यानी एक ही मतपेटिका में सभी प्रत्याशियों के वोट पड़ने लगे। मतदान में मुहर और मतपत्र के प्रयोग के कारण ही इससे संबंधित नारे भी गढ़े गए, जो काफी चर्चित भी हुए थे। यह क्रम वर्ष 99 के लोकसभा चुनाव तक चला।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से मतपेटी और मतपत्रों का काम खत्म कर दिया गया और ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का प्रयोग शुरू हो गया। ईवीएम में बटन दबाते ही आपका वोट उस प्रत्याशी के पक्ष में पड़ जाएगा जिसे आप चाहते हैं।
दरअसल, इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का चुनाव में इसलिए इस्तेमाल शुरू किया गया था ताकि कम समय में अधिक वोट पड़ सकें और उन्हें संभालने में भी दिक्कत न हो। कई शहरों में फर्जी वोटिंग की शिकायतें भी चुनाव आयोग को मिली थीं। इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए भी ईवीएम कारगर मानी गई।
'अब फटाफट हो जाती है मतगणना'
ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के कई फायदे भी हैं। इस मशीन के प्रयोग से न सिर्फ फर्जी वोटिंग की शिकायतें थमी, बल्कि अब मतगणना भी फटाफट हो जाती है।
ध्यान रहे कि जब मतदान में मतपत्र और मतपेटिकाओं का प्रयोग होता था, तब मतगणना पूरी होने में पूरे 24 घंटे का वक्त लगता था। प्रत्याशियों के समर्थकों की भीड़ आईटीआई मतगणना स्थल के आसपास सुबह से लेकर तब तक वहां जमी रहती थी, जब तक कि उनके प्रत्याशी के बारे में रिजल्ट की घोषणा नहीं हो जाती थी, मगर अब इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग शुरू होने के बाद मतगणना करना न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए बेहद आसान हो गया, बल्कि समर्थकों को भी पूरे 24 घंटे इंतजार नहीं करना पड़ता। फटाफट यानी कुछ ही घंटे में प्रत्याशियों का रिजल्ट बाहर आ जाता है।

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