क्या नरेगा बनेगा इस बार का चुनावी मुद्दा
Mar 21, 08:19 pm
लखनऊ [शिवशंकर गोस्वामी]। बीते वर्ष जून के महीने में सोनिया गांधी ने नरेगा का सच जानने के लिए अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली के कई ब्लाकों का दौरा किया। बछरावां ब्लाक में तालाबों की खुदाई और सड़क निर्माण में तमाम गड़बड़ियां नजर आयीं। उनके जाने के बाद केंद्रीय दल जांच करने आया। कई गड़बड़ियां प्रकाश में आयीं। रिपोर्ट केंद्र को सौंपी। इसके बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया।
लितपुर जिले के तालबेहट ब्लाक में पिछले साल चार सौ हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण का दावा किया गया। नरेगा से भुगतान हुआ। कांग्रेस के नरेगा सेल ने सोशल आडिट किया तो वहां तीन चौथाई क्षेत्र में नया पेड़ मिला ही नहीं। राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जो राज्य सरकार को अग्रसारित हो गया। यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बीते वर्ष वर्षा के बाद बुंदेलखंड में एक महीने के भीतर दस करोड़ पौधे लगाने का दावा किया गया। कांग्रेस ने इस आधार पर चुनौती दी कि ढाई करोड़ से अधिक पौध लगे ही नहीं। प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के नेतृत्व में हिसाब मांगों आंदोलन शुरू हुआ और हजरतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई। जांच शुरू होने से पहले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया।
इसी प्रकार की शिकायत प्रतापगढ़ जिले के पट्टी, कौशांबी के मंझनपुर, सोनभद्र के पिपरी, सीतापुर के लहरपुर, बस्ती के सल्टौआ, महोबा के पनवाड़ी और चित्रकूट के मानिकपुर ब्लाकों में मिली। सल्टौआ में प्रशासन ने उसी को जांच दे दी जिसपर आरोप थे। ऐसी तमाम शिकायतें शासन को मिली है जिससे साबित होता है कि नरेगा में सब-कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। स्थिति यहां तक पहुंची कि कांग्रेस ने कहा वह नरेगा पर राज्य सरकार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करेगी, वहीं राज्य की सरकार ने इस मुद्दे पर कांग्रेस पर पलट वार किया।
स्वयं सरकार भी मानती है कि इस साल अब तक 14600 से अधिक शिकायतें मिल चुकी है। लोकसभा चुनाव में नरेगा अगर एक बड़ा मुद्दा बन जाए तो कोई ताज्जुब नहीं। दरअसल सपा से समझौता न होने व उम्मीदवारों की घोषणा में पिछड़ने के बाद कांग्रेेस के लिए यह आसान रास्ता भी लगता है। कांग्रेस समझती है वह राज्य सरकार के खिलाफ इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी का कहना भी है कि नरेगा ऐसा मुद्दा है जिसके जरिये हम जनता को बता सकते हैं कि प्रदेश में किस कदर भ्रष्टाचार है। कांग्रेस ने वैसे तो पूरे प्रदेश में इस बात को पहुंचाने की योजना तैयार की है किंतु बुंदेलखंड पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। कारण इसी मुद्दे राहुल गांधी और मायावती दोनों रैलियां कर चुकी हैं।
नरेगा का सच बताने के लिए पार्टी ने कार्यकत्र्ताओं को गांव-गांव भेजने की योजना तैयार की है। इसके लिए एक सेल गठित किया गया है। नरेगा को लेकर जितनी हायतौबा उत्तर प्रदेश में मची उतनी किसी योजना को लेकर नहीं मची। ऐसे लोगों के नाम जाब कार्ड बनाने की शिकायत मिली जिनका अस्तित्व ही नहीं। ग्राम प्रधान के करीबी तथा पंचायत सचिवों के खास एक ही परिवार के कई लोगों के नाम कार्ड बनने की शिकायतें आम है। जांच में तमाम शिकायतें सही मिलीं। इन्हीं शिकायतों के चलते सरकार ने सरकार ने व्यवस्था में काफी परिवर्तन किया।
सीडीओ के बजाय जिलाधिकारियों को कार्यक्रम समन्वयक बनाया गया, मजदूरों का भुगतान बैंकों से अनिवार्य कर दिया गया। काम की गुणवत्ता परखने के लिए तकनीकी सहायकों की नियुक्ति की गयी तथा काम के मानक में परिवर्तन करके महिलाओं एवं कमजोर वर्ग के लोगों के लिए प्रक्रिया सरल की गई। कुछ नई योजनाओं भी इसमें शामिल की गई फिर भी योजना आरोपों से मुक्त नहीं हुई।
ज्ञातव्य हो कि ग्रामीण क्षेत्रों में एक परिवार को सौ दिन का काम देने के लिए केंद्र सरकार ने फरवरी 2006 में इस योजना की शुरुआत की जो 2008 से पूरे प्रदेश में लागू है, किंतु शुरू से ही यह विवादों की भेंट चढ़ गई और कांग्रेस व राज्य सरकार ने एक दूसरे पर जमकर आरोप लगाए जिससे दोनों के रिश्ते भी खराब हुए।
जाहिर है इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। आरोपों का दौर आज भी नहीं थमा। प्रदेश सरकार आज भी आरोप लगाती है केंद्र ने उसके हिस्से का 1300 करोड़ रुपये नहीं दिए जिसकी वजह से लक्ष्य के अनुरूप लोगों को काम नहीं मिल रहा है। इसके विपरीत कांग्रेस का कहना है कि नरेगा के तहत जो पैसा आया उसका दुरुपयोग हो रहा है।
प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी कई बार इन आरापों को दोहरा चुकी हैं। कांग्रेस के नरेगा सेल ने कुछ जिलों में सोशल आडिट करके आरोप लगाया कि योजना के तहत धांधली अब भी थमी नहीं। इसका बदला जनता चुनाव में अवश्य चुकाएगी। काग्रेस के नरेगा सेल के प्रभारी संजय दीक्षित का कहना है कि निष्पक्ष जांच करा ली ली जाए तो नरेगा अब तक के सबसे बड़े घोटाले के रूप में सामने आयेगी। चुनाव के समय उनकी पार्टी और बहुत से घपलों का खुलासा करेगी। देखना यह है कि इस मुद्दे को वह जनता तक पहुंचाने में कितनी कामयाब होती है।
क्या इस मामले को पूरे प्रदेश में चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है इस सवाल पर कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि निश्चित ही यह पूरे प्रदेश का मुद्दा होगा किंतु बुंदेलखंड में इस पर ज्यादा जोर इसलिए दिया जाएगा क्योंकि वहां जो भी गड़बड़ियां हुई हैं वे साफ दिखती हैं। और बहुत से मुद्दे हैं जो जिलों-जिलों में उठाए जाएंगे।
जिलों को दी गई धनराशि
केंद्र सरकार ने नरेगा के तहत इस वर्ष 4686.50 करोड़ रु. मंजूर किए 4236.30 करोड़ रुपये जारी किए। जिसमें से अब तक 2448.76 करोड़ [58 प्रतिशत] खर्च हुआ। मार्च के अंत तक ज्यादा से ज्यादा एक हजार करोड़ और खर्च हो जाएंगे। लगभग बारह सौ करोड़ की धनराशि फिर भी बच जाएगी। इसके बाद भी राज्य सरकार 1300 करोड़ और मांग रही है। इस वर्ष आगरा को 17.82 करोड़ मिला जिसमें से खर्च 8.67 करोड़ [49 प्रतिशत] हुआ। अलीगढ़ को मिले 16 करोड़ में से 11 करोड़ खर्च हुए, इलाहाबाद में 50 करोड़ में 44.50, अंबेडकरनगर 53.56 करोड़ में से 33.14, औरैया 24.73 करोड़ में से13.62, आजमगढ़ 125 करोड़ में से 64, बागपत 4.34 करोड़ में से 2.52, बहराइच 127.28 करोड़ में से 41.14, बलिया 79 करोड़ में से 32, बलरामपुर 70.10 करोड़ में से 42, बांदा 107.70 करोड़ में से 46.13 तथा बाराबंकी 121 करोड़ में से 74.36 करोड़ खर्च हुआ।
किसी जिले में शत-प्रतिशत धनराशि खर्च नहीं हुई। सबसे कम 5 प्रतिशत गौतमबुद्धनगर में हुई। यहां 26 करोड़ में से केवल 1.34 करोड़ की धनराशि खर्च हुई। इलाहाबाद, बिजनौर, एटा, फर्रुखाबाद, गाजियाबाद, गाजीपुर कानपुर देहात व कानपुर नगर कुशीनगर, रामपुर सीतापुर, सोनभद्र ऐसे जिले हैं जहां 70 प्रतिशत से अधिक का उपयोग किया। उन्नाव में 94 करोड़ में से 87 करोड़ [93 प्रतिशत] खर्च की गई। जिन जिलों में 50 प्रतिशत से कम उपयोग हुआ है उनमें बहराइच, बलिया, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, लखनऊ, महामाया नगर, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ, प्रतापगढ़, रायबरेली, सहारनपुर, संतकबीर नगर, सुलतानपुर आदि हैं।
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