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Monday, 30 March 2009

माया-ममता-जया साबित होंगी सत्ता की धुरी

Mar 30, 05:08 pm
नई दिल्ली। महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में आरक्षण के लाभ से वंचित रख उन्हें राजनीति के हाशिये पर रखने की लाख कोशिशों के बावजूद विश्लेषकों के अनुसार इस बार ममता बनर्जी, जे जयललिता और मायावती जैसी कद्दावर महिला नेत्री ही दिल्ली की सत्ता की धुरी साबित होने वाली हैं।
चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, इस बार चुनाव पूर्व दलों के दो बड़े गठबंधनों युपीए व एनडीए के बिखर जाने से इन तीनों नेत्रियों के अलग अलग समीकरणों के तहत मजबूत होकर उभरने की संभावना हैं।
जहां यूपी में मायावती को कांग्रेस-सपा में टूट का फायदा मिलेगा वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस और वाम दलों के अलग होने का फायदा उठाएगी। तमिलनाडु में पट्टाली मक्कल काची के यूपीए से अलग होने का सीधा फायदा अखिल भारतीय अन्नाद्रमुक की जयललिता को होगा।
जानकारों के अनुसार, तीनों नेत्री मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अपने महत्व और जनाधार को समझती हैं इसी आधार पर उन्होंने पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव के लिए तीन राज्यों की लगभग 160 सीटों के लिए अपने-अपने तरीके से अभेद्य चक्रव्यूह की रचना की है। इनमें यूपी की 80, पश्चिम बंगाल की 42 और तमिलनाडु की 39 सीटें शामिल हैं। इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए इनके विरोधियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, वैसे तो ममता, जया और मायावती तीनों ही सत्ता की सीढि़यों को तेजी से चढ़ना चाहती हैं, लेकिन मायावती की महत्वाकांक्षा कुछ अधिक ही है। इसी के चलते वह देश के सबसे अधिक सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश को को अकेले अपने दम पर ही फतह करने निकल पड़ी है। उन्होंने दावा किया है कि इस आम चुनाव के बाद उनकी पार्टी तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में सामने आएगी। उन्हें भरोसा है कि विधान सभा चुनाव की तरह उनका सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला लोकसभा में भी सफल रहेगा।
प्रधानमंत्री बनने की चाह में वह अधिक से अधिक सीटों पर कब्जा चाहती हैं। काफी दिनों तक तीसरे मोर्चे के नेताओं को भटकाने के बाद आखिरकार मायावती ने अपने दम पर ही चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है। उनकी बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में सीटों के परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
पिछले विधान सभा चुनाव और आम चुनाव में इन सभी राज्यों में पार्टी का वोट प्रतिशत काफी बढ़ा है। पिछले आम चुनाव में बसपा को 16 सीटें मिली थी और उसका वोट प्रतिशत 5.33 प्रतिशत था। लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश में हुए विधान सभा चुनाव में बसपा के वोट प्रतिशत में असाधारण बढ़ोतरी हुई है। इस समर्थन से लबरेज मायावती ने चुनावपूर्व तालमेल की संभावना पर ज्यादा विचार करने के बजाय चुनाव पश्चात गठबंधन पर ही ज्यादा जोर दिया है। वह विपक्षी दलों के चक्रव्युह को तोड़ने के लिए अभिमन्यु की तरह अकेले ही मैदान डटी हुई है।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार, तमिलनाडु में इस बार सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कष्गम को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। इसका सीधा फायदा अखिल भारतीय अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता को होगा। पट्टाली मक्कल काच्चि [पीएमके] के चुनाव से पहले यूपीए से नाता तोड़ने के कारण भी चुनावी समीकरण अन्नाद्रमुक के पक्ष में हो गए हैं। जयललिता राज्य में सत्ता विरोधी लहर का भरपूर लाभ उठाने की फिराक में हैं। इसके अलावा द्रमुक को श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर भी मुंह की खानी पड़ सकती है। यह स्थिति भी जयललिता के लिए अच्छी बताई जा रही है। पिछले आम चुनाव में अन्ना द्रमुक को तो कोई सीट नहीं मिली थी लेकिन पीएमके को छह सीटें मिली थी।
जानकार बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी सत्तारूढ़ वाम मोर्चे के लिए मुसीबत का सबब बन सकती हैं। इस तेज तर्रार नेता के राज्य में नई शाक्ति बनकर उभरने की संभावनाओं के चलते ही कांग्रेस ने इस बार उसका दामन थामा है। ममता इस बार सिंगुर और नंदीग्राम के मुद्दों पर वाम मोर्चा को पटखनी देने की फिराक में है। विश्लेषकों के अनुसार पिछले आम चुनाव में एक सीट जीतने वाली तृणमूल के साथ का कांग्रेस को भले ही फायदा हो न हो लेकिन ममता बनर्जी को इसका फायदा मिलने की पूरी-पूरी संभावना है।
विश्लेषक यह भी बता रहे हैं कि राजनीतिक दलों की मौकापरस्ती के चलते इस बार ऐसे समीकरण बन रहे हैं, जिनसे अपने-अपने राज्यों में इन तीनों नेत्रियों के एक ऐसी नई शक्ति के रूप में उभरने की संभावना है जिसे केंद्र सरकार के गठन के समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। लंबे समय से राजनीति की धूप छांव झेल रही इन तीनों नेताओं ने इस स्थिति को भांपते हुए सोच समझकर अपने चुनावी मोहरे बैठाएं हैं।

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