लंदन में सिखों के लिए सहूलियत
लंदन में रह रहे सिख समुदाय के लोगों के लिए एक नया प्रशासनिक फ़ैसला उनके लिए ख़ासी राहत देने वाला माना जा रहा है. इस समुदाय के लोगों से जुड़े मामलों के लिए अब सिख अधिकारी नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है.
यह नई सेवा लंदन की मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने इस उद्देश्य के साथ शुरू की है कि पंजाबी तौर-तरीकों के जानकार और विशेषज्ञ के ज़रिए सिख समाज में ज़बरदस्ती होने वाली शादी और कथित तौर पर प्रतिष्ठा के लिए किए गए आपराधिक मामलों को हल करने में मदद मिल सकेगी.
पुलिस अधिकारियों ने बीबीसी को बताया कि सिख समाज में होने वाले कुछ अपराधों का हल इसलिए नहीं निकल पाता क्योंकि ब्रितानी मूल के अधिकारियों के लिए उनके तौर-तरीकों और संस्कृति को समझ पाना आसान नहीं होता.
मेट्रोपॉलिटन पुलिस सिख एसोसिएशन (एमपीएसए) के अध्यक्ष पलबिंदर सिंह ने कहा “ये (सामाजिक स्तर पर) विविधता को जानने, पहचाने और उसका आदर करने से संबंधित है.”
उन्होंने कहा, “किसी सिख से कोई गोरा अफ़सर उनके मुद्दों पर कभी भी खुलकर बातचीत नहीं कर सकता है. हम लोगों के पास ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पंजाबी संस्कृति खुद ही किसी मामले में मुद्दा बन गई हो और उसकी समझ की कमी के कारण वहाँ गंभीर अपराध की ठीक से जाँच नहीं हो सकी है.”
यह भी साफ़ किया गया है कि इस नई सेवा का मतलब ये नहीं है कि सिख मामलों में कोई गोरा अधिकारी नहीं रहेगा बल्कि इसका मतलब ये है कि वहां सिख अधिकारी की भी सुविधा होगी जिसके ज़रिए वे पुलिस से संपर्क कर सकते हैं और अपनी बात रख सकते हैं.
वेबसाइट
इसके लिए एक वेबसाइट तैयार की गई है जिसके ज़रिए अपराध की ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है.
अधिकारियों ने ये उम्मीद ज़ाहिर की कि इस वेबसाइट से उन महिलाओं को मदद मिलेगी जो गौरव और सम्मान जैसे तर्कों की ओट में होने वाली हिंसा और जबरन शादी की शिकार हैं. उन्हें भी मदद मिलेगी जिन्हें घरों से निकलने नहीं दिया जाता है और उन्हें कोई फ़ोन नहीं करने दिया जाता है.
पुलिस का कहना है कि एमपीएसए के ज़रिए शुरू की गई इस नई सेवा की तर्ज़ पर भविष्य में दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को भी ऐसी ही सहूलियत दी जा सकती है.
जगदीश सिंह इस योजना का समर्थन करते हैं उनका का कहना है कि अपनी दाढ़ी और पगड़ी के कारण उन्हें जातिवादी हमलों का सामना करना पड़ा है.
उनकी 27 वर्षीय बहन सुरजीत अठवल इसी तरह के एक अपराध का शिकार बनी थीं जिसमें उनकी हत्या कर दी गई थी. उनके लापता होने के 10 साल बाद ही 2007 में उसके पति और सास को उसकी हत्या के आरोप में सज़ा हो सकी.
जगदीश सिंह कहते हैं कि यह केस एक उदाहरण है जिससे ऐसे तमाम मुद्दे सामने एक हैं, कई कमियां सामने आई हैं जिनकी वजह से सही कारणों और अपराध के मूल तक नहीं पहुंच पाते हैं.
पलबिंदर सिंह इस बारे में कहते हैं कि उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि आलोचक इस बारे में क्या कहेंगे. इससे अपराध पीड़ितों को मदद मिलेगी. सामने आने से हिचक रहे लोगों को अपनी आवाज़ उठाने का मौक़ा मिलेगा
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